सदन से किया बहिर्गमन
जब मंत्री गहलोत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश जारी किया है, वह मामला उस समय का है जब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी। यह सुनते ही विपक्षी सदस्य नारेबाजी करते हुए सदन से बाहर चले गए।
विपक्ष ने उठाया मामला
जैसे ही प्रश्नकाल शुरू हुआ कांग्रेस नेता अधीररंजन चौधरी के नेतृत्व में विपक्षी सदस्यों ने मामला उठाना चाहा। द्रमुक समेत अन्य पार्टियों के सदस्यों ने भी उनका साथ दिया।वहीं कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में कहा कि सरकार इसकी गंभीरता को नहीं समझ रही।दलित समाज हजारों सालों से शोषित और उपेक्षित रहा है। संविधान सभा में एससी एसटी को आरक्षण दिया था।हम तो हमेशा से ही पदोन्नति में आरक्षण की वकालत करते रहे हैं। उत्तराखंड सरकार के जो वकील कोर्ट में पेश हुए उन्होंने खुद कहा कि न तो नौकरी में और न ही पदोन्नति में आरक्षण होना चाहिए। हम उम्मीद कर रहे थे कि केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाएगी और अपने फैसले को बदलने की मांग करेगी और अगर सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगी तो संसद में कानून लाकर फैसले को पलटेंगे।
आजाद ने कहा कि ये देश की एक चौथाई आबादी के लिए ज़िंदगी और मौत का सवाल है। केंद्र सरकार कैबिनेट बैठक में तय करें कि वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार की मांग करेंगे और अगर सुप्रीम कोर्ट नहीं करता तो उस संसद में कानून लाकर उसे बदलाव करें।
वार-पलटवार
जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण पर हमले हो रहे हैं।
-अधीर रंजन चौधरी, सदन में कांग्रेस के नेता
सरकार को मामले में तत्काल दखल देना चाहिए। आरक्षण को नौवीं अनुसूचि में शामिल किया जाए ताकि कोई भी इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दे सके।
-चिराग पासवान, लोजपा
वर्ष 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी और उसी ने बगैर आरक्षण के पदों को भरने का फैसला किया था। केंद्र की इसमें कोई भूमिका नहीं है। हमारी सरकार आरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है।
-अर्जुन राम मेघवाल, संसदीय मामलों के मंत्री
सरकार आरक्षण के पक्ष में नहीं है, यह यकीन करने के कई कारण हैं। केंद्र को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए।
-ए. राजा, द्रमुक
यह है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं तथा पदोन्नति में आरक्षण का दावा करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने हाल में दिए गए फैसले में कहा किन्यायालय राज्य सरकार को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्देश देने के लिए कोई परमादेश नहीं जारी कर सकता है। उत्तराखंड सरकार के पांच सितंबर, 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीषर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी की थी।