बिछड़ों को अपनों से मिलाने का 'अतुल' प्रयास

गोंडा:वह एमबीए पास कर जॉब करने के लिए सोच रहे थे, पर कॅरियर की राह में अचानक मोड़ गया। आगे का रास्ता समाजसेवा की ओर जाता था। पिता ने सहमति दी तो निकल पड़े बिछड़ों को अपनों से मिलाने के लिए। इस दिशा में 'अतुल' प्रयास करते 10 वर्ष बीत गए। कई पड़ाव आए, मंजिल अभी दूर है और समाजसेवा का सफर जारी है।


वर्ष 2010 की बात है। एक दिन शहर के आवास विकास कॉलोनी निवासी अतुल पांडेय को रेलवे स्टेशन पर बेसहारा बच्चा मिला। अतुल उसे साथ ले आए और उसके अपनों की खोज शुरू की। काफी प्रयास के बाद उसके परिजन मिले। पिता कैलाशनाथ पांडेय ने हौसला बढ़ाया तो उन्होंने इस काम को ही ध्येय बना लिया। बेटे की लगनशीलता देख पिता ने गुरु रमाशंकर उपाध्याय की समिति उन्हें सौंप दी। फिर बालश्रम से बच्चों को मुक्त कराने के लिए संस्था ने सर्वे किया। रिपोर्ट को जिला बाल कल्याण समिति के सामने रखा। इसके बाद श्रम विभाग ने विशेष अभियान चलाया। रेलवे स्टेशन पर भी संस्था ने चाइल्ड लाइन की स्थापना की है।


1098 पर तत्काल सेवा :


वर्ष 2015 में अतुल ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के माध्यम से चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन को पत्र भेजा। फाउंडेशन की टीम ने यहां पर पहुंचकर उनके कार्यों की जानकारी ली। फिर यहां चाइल्ड हेल्पलाइन की सुविधा शुरू की गई। आवास विकास कॉलोनी में ऑफिस से 24 घंटे सेवा दी जा रही है। कोई भी 1098 पर कॉल कर सकता है, जरूरतमंद बच्चे को त्वरित सहायता दी जाती है।


एक नजर प्रयासों पर


- चिकित्सा सहायता से लाभान्वित बच्चे- 960


- शिक्षा की सुविधा पाने वाले बच्चे- 360


- बालश्रम से मुक्त कराए गए बच्चे- 160


- परिवारजन से मिलवाए गए बच्चे- 360


नोट: यह आंकड़े एक जनवरी 2016 से 14 फरवरी 2020 तक के हैं।